1. मुद्दा (Issue):


क्या NI ऐक्ट, 1881 की धारा 138 के अंतर्गत हुई दोषसिद्धि (conviction) को Compounding of Offences (समझौते से अपराध समाप्त करना) के आधार पर समाप्त किया जा सकता है?


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“Can Conviction in Cheque Bounce Cases be Quashed through Compounding of Offences? – A Judicial Perspective”


2. प्रासंगिक कानून (Applicable Law):


NI Act, 1881, धारा 147: स्पष्ट करता है कि NI Act के अंतर्गत आने वाले सभी अपराध सूचना और सहमति से compoundable (समझौते योग्य) हैं।


CrPC, धारा 320(5): यदि दोषसिद्धि (conviction) के बाद समझौता करना हो, तो appellate court (अपील अदालत) की अनुमति चाहिए।



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3. न्यायाधिक निर्णय (Judicial Ruling):


सूप्रीम कोर्ट ने M/s New Win Export & Anr. v. A. Subramaniam (2024) में निर्णय दिया कि यदि पक्षकारों में समझौता हो जाता है, तो अदालत को compounding प्राथमिक तौर पर देखना चाहिए।


कोर्ट ने दोषसिद्धि को रद्द कर दिया जब complainant ने हलफनामा देकर बताया कि उसे पूरी राशि मिल गई है और वह दोषसिद्धि खत्म करने को तैयार है।


न्यायिक बोझ और सार्वजनिक हित को देखते हुए Compensation (भरपाई) को दंड की अपेक्षा ज्यादा महत्व दिया जाना चाहिए।



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4. प्रीसडेंट (Precedents):


Damodar S. Prabhu v. Sayed Babalal H. (2010): सुप्रीम कोर्ट ने धारा 138 के मामलों में समझौते को प्रोत्साहित किया और देरी पर लागत (cost) निर्धारित की।


Meters & Instruments Pvt. Ltd. v. Kanchan Mehta (2018): चेक बाउंस को सिविल पेचीदगी वाला मामला मानते हुए समझौता (settlement) को प्राथमिकता दी।


Gimpex Pvt. Ltd. v. Manoj Goel (2022): भरपाई को दंड से प्राथमिकता देते हुए आपराधिक मुकदमा समाप्त किया।


Raj Reddy Kallem v. State of Haryana (2024): अनुच्छेद 142 के तहत, शिकायतकर्ता की सहमति न होने पर भी, भरपाई हो जाने पर दोषसिद्धि समाप्त।



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5. न्यायिक तर्क (Judicial Reasoning):


1. Regulatory Offence: चेक बाउंस अपराध का उद्देश्य व्यापार में विश्वास बनाए रखना है, न कि दंड देना।



2. Compounding के लिए अपील अदालत की अनुमति (Post-Conviction): CrPC धारा 320(5) के अनुसार आवश्यक।



3. Judicial Efficiency & Public Policy: भारी संख्या में चल रहे NI Act के मामले न्यायिक बोझ बढ़ाते हैं; settlement इससे निजात दिलाता है।



4. भरपाई की प्राथमिकता (Compensatory Aspect): आरोपित को दंड केवल तभी जबकि शिकायतकर्ता को भरपाई न मिली हो।



5. Article 142 का उपयोग: पूर्ण न्याय के लिए मौलिक शक्ति का उपयोग, जैसे Raj Reddy Kallem में किया गया।




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6. निष्कर्ष (Conclusion):


हाँ, पक्षकारों के आपसी समझौते (compromise deed), complainant की सहमति, और अपील अदालत की अनुमति (post-conviction) होने पर NI Act, धारा 138 की दोषसिद्धि (conviction) को compounding के माध्यम से समाप्त किया जा सकता है।


यह दृष्टिकोण सांविधिक न्याय (restorative justice) और न्यायिक व्यय (judicial economy) का संकेत है।


Compensation को प्राथमिकता, criminal punishment को माध्यमिक भूमिका दी जाती है।


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